बाकी बलिया का कडक लौंडा शिवेश वैलेंटाइन बाबा की मोहब्बत की मल्टी डाइमेंशनल कंपनी का फुल टाइम एंप्लॉयी है, जिसका एकमात्र धर्म है ‘काम’। ठीक इसके उलट है उसके बचपन का जिगरी यार, दिलदार, नाक की सीध में चलने वाला – मनीष, जिसकी सुबह है –सुजाता, जिसका शाम है – सुजाता। जो ठीक ठाक मॉडर्न है, थोड़ी स्टाइलिस्ट है, नई जबान में सेक्सी है, मस्ती की भाषा में बिंदास है, लेकिन बलिया की यह ठेठ देसी लड़की कलेजे से ऐसी मजबूत है कि अगर कोई उसे चिड़िया समझकर चारा चुराने की कोशिश करने आगे बढ़े तो उसके इरादे का वह कचूमर बनाकर रख देती है। सुजाता की रूपमेट है मोहिनी, जिसका दिल मोहब्बत के मीना बाजार से बुरी तरह बेजार हो चुका है। लव-सव-इश्क-विश्क की फिलॉसफ़ी को ठहाके में उड़ाती वह अक्सरहाँ कहने लगती है – जिसका जितना मोटा पर्स वह उतना बड़ा आशिक।
चार नौजवान दिनों के हालात का बयान है वैलेंटाइन बाबा।