

निम्फ़ोमैनियाक मूल रूप से सन् 1982 में साधना पॉकेट बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित हुआ था। मेरे सुधी पाठक, खासतौर से सुधीर, दि ओनली वन, कोहली के शैदाई पाठक, अब भी इस उपन्यास को याद करते हैं और अक्सर इसके पुनर्प्रकाशन के लिए पुरइसरार मुझे लिखते हैं। अब जब ‘साहित्य विमर्श’ से मेरे किसी उपन्यास के पुनर्प्रकाशन की बात चली तो सर्वसम्मति से मुझे इसी उपन्यास का नाम सुझाया गया। लिहाजा उपन्यास का नया संस्करण प्रकाशित हुआ।
कहना न होगा कि मेरे बहुत से पाठक ऐसे होंगे, जिन्होंने ये उपन्यास नहीं पढ़ा – कइयों ने तो नाम भी नहीं सुना होगा – और न पढ़ा होने की वजह से ही जिनके लिए उपन्यास का दर्जा नये जैसा ही होगा। अब देखना ये है कि उपन्यास वैसा ही मनोरंजक और काबिलेतारीफ है, जैसा कि सन् 1982 में इसके मूल रूप से प्रकाशन के वक्त था, या अब लगभग चालीस सालों बाद वक्त की मार खा गया है।
सन् 1982 में जब मैंने ‘निम्फ़ोमैनियाक’ की हस्तलिखित पाण्डुलिपि साधना पॉकेट बुक्स में दाखिलदफ्तर की थी, तो प्रकाशन के दोनों पार्टनरों ने मेरे से सवाल किया था कि निम्फ़ोमैनियाक का मतलब क्या था? जब मैंने उन्हें बताया था कि मतलब बहुपुरूषगामिनी स्त्री था तो एक पार्टनर ने चिन्ता व्यक्त की थी कि कहीं नाम पर ऐतराज न हो जाये और मुझे नाम बदलने की राय दी थी। बहुत मुश्किल से मैं दोनों पार्टनरों को मुतमईन कर पाया था कि नाम में काबिलेएतराज कुछ नहीं था और आखिर इसी नाम से उपन्यास छपा था।
ये बात भी काबिलेजिक्र है कि ‘निम्फ़ोमैनियाक’ मेरे विमल सीरीज के ‘खाली वार’ जैसे कालजयी उपन्यास के तुरन्त बाद तब प्रकाशित हुआ था जब ‘खाली वार’ ने पाठकों पर – प्रकाशकों पर भी – ऐसा रौब गालिब किया था कि मेरे शैदाई पाठकों का माइन्डसैट सहज ही ऐसा बन गया था कि उन्होंने ‘निम्फ़ोमैनियाक’ को इस पक्की उम्मीद के साथ पढ़ा था कि वो ‘खाली वार’ से इक्कीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं होगा।
बहरहाल कहना मुहाल है कि मेरे नये, वक्त से चालीस साल आगे निकल आए पाठकों का मिजाज किस करवट बदलेगा, मेरे पुराने पाठक तो आश्वस्त हैं कि उपन्यास भले ही नये पाठकों के मुँह से मुक्तकंठ से प्रशंसा न निकलवा पाये, नापसन्द हरगिज नहीं किया जाएगा- सुरेन्द्र मोहन पाठक
हालात से मजबूर एक स्त्री की हौलनाक कहानी जो जैसी खतरनाक जिंदगी जीती रही, वैसी ही खतरनाक मौत मरी।
– निम्फ़ोमैनियाक (सुरेन्द्र मोहन पाठक का सदाबहार उपन्यास)
“एक बार संतरा छिल जाए तो एक फांक की घट-बढ़ का कोई पता नहीं लगता था।” – ऐसे ही इंकलाबी खयालात की मालिक थी मेरे से विधिवत ब्याहता मेरी धर्मपत्नी।
जब मैंने उसे रंगे हाथों एक गैरमर्द के साथ पकड़ा तो उसने अपने उस विश्वासघात की एक ही सफाई दी :
‘वो निम्फ़ोमैनियाक थी।’ – सुधीर सीरीज का यादगार उपन्यास।
निम्फ़ोमैनियाक सुधीर सीरीज के सर्वाधिक चर्चित उपन्यासों में से एक है। सुधीर के वैवाहिक जीवन का संदर्भ कई उपन्यासों में है, जो हमेशा से पाठकों के लिए जिज्ञासा का कारण रहा है। निम्फ़ोमैनियाक सुधीर के इसी वैवाहिक जीवन की कहानी है।
काफी समय अप्राप्य रहा यह उपन्यास अब नई साज सज्जा के साथ उपलब्ध है। इस संस्करण के लिए लेखक ने खास तौर पर लेखकीय भी लिखा है, जो आमतौर पर रिप्रिंट्स के साथ नहीं होती। यही नहीं, उपन्यास में काफी कुछ नया जोड़ा है, जो निश्चय ही पाठकों को पसंद आएगा।