Jersey Number Seven Ki Diary – लेंस से मोरों को देखते हुए उसे एकबारगी अहसास हुआ कि वह कितना बदल गयी है तीन-चार महीनों में। पहले मोरों की तरह धीमी लय में चलती थी, सकुचाती थी, वह सुनंदा कहाँ गयी! अब चंचलता बढ़ गयी है, इसीलिए नीचे वाली आंटी कह रही थी – ‘दुल्हनिया, सीढ़ी पर जल्दी-जल्दी चढ़ना-उतरना ठीक नहीं होता।’ वह शेखर से एकदम घुल-मिल गयी थी और अपने पंख खोलती चली जाती थी, मगर मोरों की मानिंद पंख समेटने की कला भूल गयी थी।