
Kitab Lelo
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Ghar Wapsi – घर वापसी उन विस्थापित लोगों की कहानी है जो बेहतर भविष्य के लक्ष्य का पीछा करते हुए, अपने समाज से दूर होने के बावजूद, वहाँ से पूरी तरह निकल नहीं पाते। यह कहानी बिहार-उत्तर प्रदेश आदि के गाँवों, छोटे शहरों से शिक्षा और नौकरी की तलाश में निकले युवाओं के आंतरिक और बाह्य संघर्ष की कहानी है। अपने जड़ों की एक चिंता से जूझते हुए कि मगर वो वहीं होते, तो शायद कुछ बदलाव ले आते। एक अंतर्द्वंद्व कि अपने नए परिवार, जिसमें पत्नी-बच्चे और उनका भविष्य है, को ताकूँ, या पुराने परिवार को, जिसमें माँ-बाप से लेकर समाज की भी एक वृहद् भूमिका होती है, लगातार चलता रहता है। समाज भी एक परिवार होता है, वो भी एक माँ-बाप का जोड़ा है जो आप में निवेश करता है। ‘मुझे क्या बनना है‘ के उत्तर का पीछा करते हुए मुख्य पात्र आज के समय में एक बेहतर स्थिति में ज़रूर है लेकिन वो परिस्थितिजन्य ‘बेहतरी‘ है। रिश्तों की गहराई और संवेदनाओं के एक वेग में घर वापसी के पात्र बहते हैं। पिता-पुत्र, पति-पत्नी, अल्पवयस्क प्रेमी-प्रेमिका, दोस्ती जैसे वैयक्तिक रिश्तों से लेकर समाज और व्यक्ति के आपसी रिश्तों की कहानी है घर वापसी। कहानी के मुख्य पात्र रवि के अवचेतन में उसी का एक हिस्सा नोचता है, खरोंचता है, चिल्लाता है.. लेकिन उसके चेतन का विस्तार, उसके वर्तमान की चमक उस छटपटाहट को बेआवाज़ बनाकर दबा देते हैं। रवि अपनी अपूर्णताओं को जीते हुए, उनसे लड़ते हुए, बचपन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर का पीछा करता रहता है कि उसे क्या बनना है। अपने वर्तमान में सामाजिक दृष्टि से ‘सफल‘ रवि का अपने अवचेतन के सामने आने पर, खुद को लंबे रास्ते के दो छोरों को तौलते हुए पाना, और तय करना कि घर लौटूँ, या घर को लौट जाऊँ, ही घर वापसी की आत्मा है।
Weight | 140 g |
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Dimensions | 2 × 0.1 × 1.3 cm |