अपनी पहली साँस से लेकर अंतिम साँस तक यूँ तो हर कोई अपनी एक नियत जीवन यात्रा से गुजरता है। चाहे वो उतार-चढ़ाव वाली हो, घुमावदार हो या सीधी सपाट।
इस मायने में हर इंसान सैलानी ठहरा। लेकिन ताज्जुब ये कि अंतिम पड़ाव तक पहुँच जाने पर भी उनमें से अधिकतर ये जान नहीं पाते कि वो एक सुहाने सफ़र का हिस्सा थे। वे बस चलते चले जाते हैं, ऐसे जैसे चलता रहता है कोल्हू का बैल कोई।
इस चलने में तेल तो बनता रहता है, पता पर उनको चलता नहीं, ना ही उनकी देह के काम आ पाता है। दुनिया मगर इन जैसों के काँधों पर बैठ नहीं चलती। अपने धुर विगत इतिहास से लेकर अब तक, वो चलती-बढ़ती रही है उन खोजी-मनमौजी घुमंतु लोगों की बदौलत जो दूर-दूर तक ना जाने किस अनंत की तलाश में अथक रास्ते नापते रहे हैं।
हमारे पुरखों की उन यात्राओं से ही हमारी दुनिया का ये वर्तमान नक्शा उजागर हुआ है।
मेरी यह यात्रा भी उनके नक्शे-कदम पर चलकर उनकी यात्रा को एक कदम और आगे बढ़ाने की एक कोशिश थी। इस यात्रा वृत्तांत में दुनिया के इसी नक्शे पर ठीक दिल की जगह बसे देश तुर्की का बखान है। मैं उम्मीद करती हूँ ग्लोब का ये अनूठा दिल मेरे दिल की खिड़की में टँगकर विंडचाइम की मीठी ध्वनि की तरह आपका दिल लुभाएगा।