ओए मास्टर के लौंडे – मेरे लिए इसे लिखना ऐसा था जैसे किसी होम्योपैथ को अपनी हिस्ट्री देना, जो कहता है, ‘शुरु से शुरु करो’ और धीरे धीरे वो आपको भीतर तक कुरेद डालता है। वहाँ गहरी अंदरूनी तहों में दबी-छिपी मिलती हैं कुछ कथाएँ, कुछ व्यथाएँ, कुछ परिचित-अपरिचित लोग, कुछ घटनाएँ। इसे लिखने की यात्रा में वे सब मेरे सामने ज़िंदा हो उठे। कुछ ने तो शिकायत भी की, ‘इत्ते दिनों बाद याद आई हमारी!’ और मैं ख़ुद पर शर्मिंदा हो उठी। – दीप्ति मित्तल