Adi Shankaracharya आदि शंकराचार्य -प्रायः सभी महापुरुषों के बारे में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हो जाती हैं, शंकर के बारे में भी प्रचलित हुईं । इन किंवदंतियों की हम अवहेलना भी कर दें तो भी उनका कृतित्व स्वयं में एक बहुत बड़ी किंवदंती के रूप में सामने आता है । जन-सामान्य में आचार्य शंकर को भगवान शंकर का अवतार माना जाता है । यदि हमारे आधुनिक संस्कार यह मानने को तैयार न हों, तब तो आचार्य का व्यक्तित्व और भी ऊँचा हो जाता है। मात्र बत्तीस वर्ष के जीवन में जो उन्होने किया वह कोई पौराणिक आख्यान नहीं अपितु इतिहास सम्मत घटना है जिसे नकारा नहीं जा सकता । शंकराचार्य ने चरमराई सामाजिक व्यवस्था को पुनर्जीवन दिया, दबे-कुचले वर्ग को सम्मान दिया, और यह स्थापित करने में सफलता पाई कि जितने भी मत समय-समय पर उभरे और अलग-अलग संप्रदायों के रूप में आकर हिन्दू समाज को विभक्त कर दिये, वो सब वास्तव में हिन्दू दर्शन में पहले से ही समाहित थे । शंकर सर्वसामान्य हुए, प्रतिष्ठित हुए । दूसरी बड़ी विचित्रता थी कि उन्होंने भीषण यात्राओं कीं।